कर्मण्येवाधिकारस्ते – भगवद गीता 2.47
श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
अनुवाद:
🔸 संत रामपाल जी महाराज:
तू केवल अच्छे कर्म कर, फल देने का अधिकार सिर्फ परमात्मा का है। फल की चिंता न कर, निष्क्रिय मत बन।
🔸 स्वामी विवेकानंद:
अपने कर्तव्य का पालन करो और फल की चिंता मत करो। निष्काम कर्म ही मोक्ष का मार्ग है।
🔸 ओशो:
जब तुम फल की अपेक्षा करते हो, तुम वर्तमान से हट जाते हो। कर्म स्वयं में परिपूर्ण है।
🔸 ISKCON (गीता As It Is – श्रील प्रभुपाद):
एक व्यक्ति को अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करना चाहिए, लेकिन फल की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए।
📚 स्रोत:
- Bhagavad Gita Chapter 2, Verse 47
- Vivekananda Writings
- Sant Rampal Ji Maharaj – Satsang
- Gita As It Is by ISKCON
🔍 टिप्पणी:
यह श्लोक “कर्मयोग” का मूल आधार है। सभी संतों ने इसके अलग-अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं लेकिन सार यही है कि व्यक्ति को फल की चिंता छोड़कर अपने धर्म-कर्म में लगे रहना चाहिए।
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